IAS Tapasya Parihar अपने मित्र गर्वित गंगवार से विवाह किया, जो खुद भी एक अधिकारी हैं। शादी में इन्होने अपना कन्यादान होने से मना कर दिया और कहा की मै कोई दान की वस्तु नही हु |
IAS Tapasya Parihar (2017) कन्यादान न कराने का फैसला
भारत एक परंपराओं से भरा देश है जहाँ शादियों में कई रस्में निभाई जाती हैं। इनमें से एक प्रमुख रस्म है कन्यादान, जिसमें पिता अपनी बेटी को दान स्वरूप दूल्हे को सौंपते हैं। मगर आधुनिक युग में कई लोग इन परंपराओं पर प्रश्न उठाने लगे हैं। ऐसी ही एक मिसाल पेश की है IAS Tapasya Parihar ने, जिन्होंने अपनी शादी में कन्यादान की रस्म न कराने का निर्णय लिया। तपस्या परिहार मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के जबलपुर के पास एक छोटे से गाँव जवा की रहने वाली हैं। वे साल 2017 बैच की IAS अधिकारी हैं। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित फैकल्टी ऑफ लॉ से कानून की पढ़ाई की। फिर UPSC की तैयारी में जुट गईं और अपने दूसरे प्रयास में देशभर में 23वीं रैंक लाकर सबको चौंका दिया। जब IAS Tapasya Parihar की शादी की बारी आई, तो उन्होंने अपनी शादी को सरल और अपनी सोच के अनुसार बनाने का निर्णय लिया। उनके विवाह की सबसे ज्यादा चर्चा कन्यादान की रस्म न करने को लेकर हुई। उनके इस फैसले ने समाज में एक नई बहस छेड़ दी। तपस्या का मानना है कि लड़की कोई वस्तु नहीं है जिसे दान में दे दिया जाए। वह स्वयं अपने फैसले लेने में सक्षम है। उनके अनुसार विवाह दो बराबर व्यक्तियों का मिलन है, न कि कोई लेन-देन। कन्यादान की परंपरा सदियों पुरानी है, जहाँ बेटी को पिता अपने दामाद को ‘दान’ करते हैं। तपस्या को यह विचार स्वीकार नहीं था। उनकी शादी में न तो कन्यादान हुआ, न ही कोई दिखावा। उन्होंने अपने विवाह को बिल्कुल सादगी से संपन्न किया। इसमें दो परिवारों ने एक-दूसरे को सम्मानपूर्वक स्वीकार किया। तपस्या ने कहा कि शादी में माता-पिता बेटी को विदा कर सकते हैं, आशीर्वाद दे सकते हैं, पर कन्यादान की प्रथा उन्हें सही नहीं लगती। उनके इस फैसले की खूब तारीफ भी हुई। कई लोगों ने कहा कि यह कदम महिलाओं के आत्मसम्मान को बढ़ाने वाला है। वहीं कुछ परंपरावादियों ने इसकी आलोचना भी की। लेकिन तपस्या ने अपने निर्णय पर मजबूती से कायम रहते हुए कहा कि समाज में बदलाव जरूरी है। अगर कोई परंपरा आज के समय में महिला को सामान समझे, तो उसे बदलना चाहिए। तपस्या परिहार की यह सोच आज की पढ़ी-लिखी, आत्मनिर्भर महिला की आवाज है। वे चाहती हैं कि बेटियां खुद को कमजोर न समझें और अपनी शर्तों पर जीवन जीएं। उनका यह कदम समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है कि बेटियाँ दान की वस्तु नहीं, वे अपने जीवन की स्वामी स्वयं हैं। इस तरह IAS तपस्या परिहार ने अपनी शादी को एक नई सोच दी और कन्यादान न कराके समाज में एक नई मिसाल कायम की। उनके इस कदम ने महिलाओं के अधिकारों और समानता की दिशा में एक अहम संदेश दिया है।
IAS Tapasya Parihar (2017) प्रारंभिक जीवन, शिक्षा और UPSC की तैयारी

IAS Tapasya Parihar मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर जिले के जबर्रा गाँव की रहने वाली हैं। उन्होंने वर्ष 2017 की UPSC सिविल सेवा परीक्षा में 23वीं रैंक प्राप्त की और पूरे देश में अपने परिवार, गाँव और राज्य का नाम रोशन किया। तपस्या की कहानी लाखों युवाओं के लिए एक प्रेरणा है। तपस्या का जन्म एक किसान परिवार में हुआ। उनके पिता श्री दिलीप परिहार एक किसान हैं और माँ चंद्रकला परिहार गृहिणी हैं। उन्होंने अपनी शुरुआती शिक्षा नरसिंहपुर में की। इसके बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी के इंदिरा गांधी महिला महाविद्यालय से लॉ (LLB) की पढ़ाई की। तपस्या परिहार ने ग्रेजुएशन के बाद ही ठान लिया था कि उन्हें सिविल सर्विस में जाना है। उन्होंने पहली बार में ही UPSC परीक्षा दी थी लेकिन सफल नहीं हो पाईं। इसके बाद उन्होंने अपनी कमियों पर मेहनत की और दूसरी बार में शानदार सफलता पाई। उन्होंने कोई कोचिंग क्लास नहीं की, बल्कि सेल्फ-स्टडी और इंटरनेट का सहारा लिया। तपस्या का मानना है कि नियमितता, अनुशासन और आत्मविश्वास सफलता की कुंजी है। उन्होंने कहा था कि उन्हें रोज़ाना अख़बार पढ़ने, नोट्स बनाने और मॉक टेस्ट देने से बहुत मदद मिली।